स्वामी विवेकानन्द और गाँधी जी का समाजदर्शन
Abstract
स्वामी विवेकानन्द और गाँधी जी का भारतीय चिन्तन परम्परा में अप्रतिम योगदान है। दोनों का समाजदर्शन इतना भव्य हे कि धरती पर ही स्वर्ग उतर आये। उदाहाणार्थ दलित-चेतना को ऐसा प्रखर स्वर कदाचित् ही स्वामी जी के अतिरिक्त किसी विचारक ने दिया हो। उनकी वाणी में स्वामी जी की दृष्टि और कार्ययोजना स्पष्टतः प्रतिबिम्बित हो रही है। क्या कोई आन्दोलन उनकी गर्जना के सम्मुख टिक सकता है। ये एक ऐसे संन्यासी की उद्घोषणा है, जो स्वनिरपेक्ष हो गया, समाज निरपेक्ष, राष्ट्र निरपेक्ष और धर्म निरपेक्ष कदापि नहीं हुआ। इसी कारण भारतीय संन्यास परम्परा में विवेकानन्द जी का सर्वथा अद्वितीय स्थान है।
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