शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य चरित्र निर्माण है
Abstract
वर्तमान समय में देश में कई समस्याएँ व्याप्त हैं। विभिन्न सरकारों द्वारा समस्यायों के समाधान के लिए किये जा रहे सारे प्रयास असफल साबित हो रहे हैं। आज कन्या भ्रूण हत्या बात करंे या महिलाओ पर अत्याचार, चाहें आतंकवाद की बात करें या साम्प्रदायिकता की ये सारी समस्याओं तीव्र गति से निरंतर बढ़ते जाना चिंता का विषय है।
आजादी के इतने सालों के बाद भी देश का एक हिस्सा मूलभूत सुविधाओं से वंचित नजर आ रहा है, देश की शिक्षा व्यवस्था ढुलमुल गति से सिर्फ आगे बढ़ रही है उसमे विकास का नामोनिशान तक नहीं है। देश की शिक्षा व्यवस्था को राजनीतिक रंग देने का प्रयाश किया जा रहा है,जिसका हालिया उदाहरण देखने को मिला जिसमे दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन को 4 वर्षीय कोर्स को राजनितिक ड्रामा के बाद आखिरकार वापिस लेना पड़ा।
स्वामी विवेकानंद ने 140 वर्ष पूर्व तत्कालीन समस्याओं के समाधान के लिए जो विचार व्यक्त किये थे वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। विशेष रूप से स्वामीजी ने शिक्षा के बारे में जो चिंतन व्यक्त किया है, उनका वर्तमान शिक्षा में समावेश किया जाए या उन विचारों के आधार पर वर्तमान शिक्षा का ढांचा बनाया जाये तो देश की शिक्षा के साथ -साथ और भी कई समस्याएं हैं जनके समाधान तक पहुँचने में सक्षम हो सकते हैं।