दीनदयाल उपाध्याय जी के उपन्यासों में एकात्म मानवदर्शन
Abstract
पण्डित दीनदयाल उपाध्यायजी के उपन्यास जगद्गुरु शंकराचार्य में ’एकात्म मानवदर्शन’ का पूर्ण प्रतिबिम्बन होता है। महर्षि अरविन्द ने कहा था ’भारत को अपने भीतर से समूचे विश्व के लिये भविष्य के पथ का निर्माण करना होगा। एक शाश्वत पंथ जिसमें पंथों, विज्ञान, दर्शन आदि का समावेश होगा और जो मानवता को एक आत्मा में बांधने का काम करेगा।” आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ने सम्भवतः महर्षि के इन्हीं उद्गारों को आत्मसात करते हुये विश्व के समक्ष ’एकात्म मानव दर्शन” प्रस्तुत किया था।
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