एकात्म मानवतावाद के प्रणेता पं0 दीनदयाल उपाध्याय
Abstract
पं0 दीनदयाल उपाध्याय उन आदर्ष पुरुषों में से एक थे जिन्होंने शुक्र, बृहस्पति और चाणक्य की भाँति आधुनिक राजनीति को शुचि और शुद्धता के धरातल पर खड़ा करने की प्रेरणा दी। वे जन्मतः नहीं कर्मतः महान थे। श्री उपाध्याय मूल विचारक थे। युवावस्था में ही उनकी प्रगल्भ बुद्धि ‘व्यक्ति और समाज‘, ‘स्वदेश और स्वधर्म‘, ‘परम्परा तथा संस्कृति‘, जैसे गूूढ़ विषयों की ओर आकृष्ट हो चुकी थी। अतः इन विषयों का उन्होंने गहन अध्ययन, चिन्तन और मनन किया। परिणामस्वरूप वे उस प्राचीन मनीषा के आधुनिक व्याख्याकार के रूप में उभरे, जिसने भारतीय समाज को स्वाभाविक रूप में प्रकट होने वाले विभिन्न अन्तर्विरोधों पर विजय पाने की योग्यता प्रदान की। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि मन की स्थिति ही सुख की अवधारक है, मन पर नियंत्रण ही वास्वविक विकास है वह स्पष्ट तौर पर कहते थे कि उपभोग के विकास का रास्ता राक्षसत्व की ओर जाता है और मन को नियंत्रित करने का विकास का रास्ता देवत्व की ओर जाता है।