पं0 दीनदयाल उपाध्याय द्वारा संप्रेषित समाजवाद एवं जनतान्त्रिक पूँजीवाद
Abstract
विश्व के ज्ञात प्राणियों में मानव ही सर्वाधिक विकसित वैचारिक क्षमता प्राप्त प्राणी है। मनुष्य के जीवन, विकास व उसके परिणामों के आधार पर ही विश्व की सुखद अनुभूति का आंकलन किया जाता है। विश्व के विकास व विनाश दोनों की कुंजी आज मानव के ही हाथ में हैं। विज्ञान व तकनीक के अभूतपूर्व विकास के बाद भी जिन संकीर्णताओं के कारण मानव जाति विनाश के कगार पर जाकर खड़ी हुई, उन्हीं संकीर्णताओं का विनाशकारी तत्व समकालीन विश्व में दिखाई दे रहा है। भौतिकवादी संस्कृति में लिप्त मानव को सुख-शान्ति के विपरीत अंसतुष्टि, अशान्ति व विनाश के अनेकों कारकों की अनुभूति भी इन्हीं सुविधाओं व व्यवस्थाओं के कारण हो रही है। कारण स्पष्ट है, प्रत्येक राष्ट्र में स्वयं की भौगोलिक स्थिति, इतिहास, संस्कारों व परम्पराओं पर आधारित एक विशेष सांस्कृतिक विरासत होती है तथा उसी विशेष संस्कृति की अनुकुलित व्यवस्थाओं में राष्ट्र की उन्नति व विकास सुनिश्चित होता है।