मजबूत राष्ट्र का मंत्रः ’हम’ ना कि ’मैं’
Abstract
पं० दीनदयाल जी एक कुशल राजनीतिज्ञ, सगठनकर्ता थे। वास्तव में वे एक युग पुरूष भी थे। पण्डित जी देश की एकता और अखण्डता की रक्षा के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। उन्होने अपनी जीवन के हर एक क्ष्ण को समाज सेवा लगाया।
पण्डित जी के अनुसार, राष्ट्र एक जीवन मान इकाई है इसका विकास वर्षो-शताब्दियों लबे कालखण्ड में होता है किसी निश्चित भूदृभाग में निवास करने वाला। मनुष्य समुदाय जब उस भूमि के साथ तादात्य का अनुभव करने लगता है जीवन के विशिष्ठ गुणों को आचरित करता हुआ समान परंपरा और महत्वाकांक्षाओं से युक्त होता है। तो ऐसी परम्परा का निर्वाहन करने वाले तथा उसे अधिकारिक तेजस्वी बनाने के लिये महान तप, त्याग, परिश्रम करने वाले महापुरूर्षों की श्रृंखला का निर्माण होता है। इस भावनात्मक स्वरूप को ही राष्ट्र कहा जाता है।
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