समन्वयवादः पूँजीवाद और तानाशाही के दोषों का हल
Abstract
समाजवाद और लोकतंत्र दोनों ने ही मानव के भौतिक स्वरूप और आवश्यकताओं पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया है और दोनों की आधुनिक विज्ञान और यांत्रिक उन्नति पर अत्यधिक श्रद्धा है। दोनों ही इन वर्तमान अविष्कारों के शिकार से हो गए हैं। परिणाम यह है कि उत्पादन के साधनों का निर्धारण, मानव कल्याण और उसकी आवश्यकताओं के अनुसार नहीं किया जा रहा है, बल्कि उनका निर्धारण यंत्रों के अनुसार करना पड़ रहा है। उत्पादन की केंद्रित व्यवस्था में, फिर उसका नियंत्रण चाहे व्यक्ति द्वारा हो अथवा राज्य द्वारा, मानव के स्वतंत्र व्यक्तित्व का लोप हो जाता है। मशीन के एक पुर्जे से अधिक उसका महत्त्व ही नहीं रहता। यदि हमें मनुष्य के मनुष्यत्व की रक्षा करनी है तो हमें उसे मशीन की गुलामी से मुक्त करना होगा। आज व्यक्ति मशीन पर शासन नहीं करता, मशीन मनुष्य पर शासन कर रही है।
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