एकात्म मानव दर्शन तथा अन्त्योदय
Abstract
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का एकात्म मानव दर्शन सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक दोनों ही दृष्टि से एक सदकालिक एवं सार्वभौमिक जीवन दर्शन है। इस दर्शन के अनुसार मानव सम्पूर्ण ब्रह्मांड के केन्द्र में अवस्थित रह कर एक सर्पलाकार मण्डला कृति के रुप में अपने स्वयं के अतिरिक्त क्रमशः परिवार, समुदाय, समाज, राष्ट्र एवं विश्व के प्रति अपने बहुपक्षीय उत्तरदायित्वों का निर्वहन करता हुआ, प्रकृति के साथ संग्रहित होता हुआ, एकीकृत हो जाता हैं। व्याष्टि से समाष्टि की ओर गतिमान व्यक्ति के इस बहुआयामी सृजनात्मक व्यक्तित्व का प्रकृति के साथ तादाम्य स्थापित होना ही एकात्म मानव दर्शन के रूप में निहित है। पंडित जी के अनुसार मानव ही उस ब्रह्माण्ड व्यष्टि इकाई है, जिसके सर्वांगीण विकास सम्भव नहीं है।
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