एकात्म मानव दर्शन तथा अन्त्योदय
Abstract
भारत में ’एकात्म मानववाद’ ने पश्चिमी विचार दर्शन सम्बन्धी व्यवस्थाओं की अपूर्णता एकांगीपन असन्तुलन और व्यर्थता को पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है। एकात्मवादी इस व्यवस्था ने हमें ऐसे विश्व राज्य के उदय की संभावना से अवगत करा दिया है जिसमें सभी देशों की राष्ट्रीय संस्कृतियां अपना-अपना विकास करते हुये मानवता को समृद्ध बनाने में सहायक हो सकेगी और तब ऐसे मानव धर्म का विकास किया जा सकेगा जिसमें भौतिकता सहित संसार में सभी मजहब पंथ या रिलीजन अपनी पूर्णता के साथ अपना योगदान कर सकेंगे।
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