एकात्म मानववाद एक प्रसंग
Abstract
पश्चिम का अंधानुकरण ही विकास समझा जा रहा है। पश्चिम की भोगवादी संस्कृति यह मानती है कि मानव जीवन भोग के लिए ही हुआ है, और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रकृति का अनैतिक शोषण, मानव का अधिकार है। इसके विपरीत भारत की सनातन रचना अखंड मंडलाकार है, इसमें मानव, परिवार, समाज, राष्ट्र और अंततः यह समस्त सृष्टि है। भारतीय संरचना में पहली इकाई से ही अंत तक की इकाइयां विकसित होती हैं और वृद्धि करती हैं, इनमें परस्पर कोई विरोध नहीं है।
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