पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानवदर्शन तथा आर्थिक विचार
Abstract
भारत की आजादी के समय विश्व दो ध्रुवीय विचारों में बंट गया था, पूंजीवाद और साम्यवाद। यद्यपि हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के जननायकों का इस विषय पर मत था कि भारत अपने पुरातन जीवन-मूल्यों से युक्त रास्ते पर चले। परंतु यह विडंबना हैं कि देश ऊपर लिखे दोनों विचारों के व्यामोह में फंस कर घड़ी के पेंडुलम की तरह झूलता रहा। आजादी के बाद ही प्रसिद्ध चिंतक, राजनीतिज्ञ एवं समाजसेवक पं. दीनदयाल उपाध्याय ने इन दोनों विचारों, पूंजीवाद एवं साम्यवाद के विकल्प के रूप में एकात्म मानववाद का दर्शन रखा था। उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर जोर दिया। अब जब कि साम्यवाद ध्वस्त हो चुका है, पूंजीवाद को बिखरते-टूटते हम देख ही रहे हैं, भारत एवं विश्व के समक्ष इस दर्शन की प्रासंगिकता पर नए सिरे से विचार का समय आ गया है।
Downloads
Download data is not yet available.